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माँ की ममता

माँ की ममता
कुछ भी नहीं बड़ा जग होता,
माता की ममता से।
दिव्य देव माँ स्नेह लुटाती-
निज कर कोमलता से।।

भोली-भाली हँसी देख कर,
बच्चे के अधरों पर।
भले चुभन हो मन में उसके,
बहें स्नेह के निर्झर।
हर लेती मुस्कान अधर की-
सब दर्द प्रबलता से।।
      निज कर कोमलता से।।

पुष्प खिले जीवन-बगिया में,
या हो कली खुशी की।
कभी न अंतर करती माता,
दोनों धुन बंसी की।
दोनों के प्रति नेह-भाव को-
दे माता समता से।।
     निज कर कोमलता से।।

दोनों के अधरों की खुशियाँ,
देख जगत मुस्काए।
रहे सदा खुशियों का मौसम,
सब जन को ही भाए।
माँ-बच्चे की खुशी का वर्णन-
परे कलम-क्षमता से।।
    निज कर कोमलता से।।

भरा रहे माँ-आँचल ऐसे,
सदा-सदा खुशियों से।
रहे सुगंधित आँगन-बगिया,
खिले पुष्प-कलियों से।
बच्चे के सँग माँ मुस्काए-
दैवत्व-सहजता से।।
         कुछ भी नहीं बड़ा जग होता,
         माता की ममता से।
         दिव्य देव माँ स्नेह लुटाती-
          निज कर कोमलता से।।
                       ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                           9919446372

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5 Comments

Dilawar Singh

07-Jan-2024 09:37 AM

बहुत खूब 👌

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Mahendra Bhatt

01-Apr-2023 08:46 PM

बहुत खूब

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लाजवाब लेखन

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